वसंत खड़ा है लेकर प्यार
वसंत खड़ा है लेकर प्यार
खोल दो मन के दरवाजे
खड़ा नव वर्ष आपके द्वार,
झूम के नाचें गायें हम
बसंत खडा है ले कर प्यार।
हवा ने भोर के कागज पर
किया है गंधों से चित्रण,
नई कलियों ने पलकें खोल
दिया भौंरों को आमंत्रण,
कोयलिया फाग सुना करके
लुभाती है सबके चितवन,
अजी सरसों ने चूनर ओढ़
धुँध की चादर दी है उतार।
तेरे एहसासों के तट पर
देह की नाव खड़ी कबसे,
उमड़ता संवेदन का ज्वार
हृदय हतप्रभ लागे तब से,
प्रीत का पाल सम्हालो तुम
गीत कुछ झरे तभी लब से,
शब्द हैं मौन पड़े मेरे
कामना करती करूण पुकार।
कामना है मेरी बस ये
न हो इसका कोई भी अंत,
हरी हो मन की यह धरती
खिले हो प्रेम के पुष्प अनंत,
रति बन जाये अर्धांगिनी
प्रणय के बाण चलाये कंत,
अधर पर खिलते हो टेसू
नयन में छाए मस्त खुमार।
