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Vijay Kumar parashar "साखी"

Romance Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Romance Tragedy

वो आजकल

वो आजकल

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वो हमसे आजकल कुछ ख़फ़ा हो गये है

हम उनके लिये आजकल बेवफ़ा हो गये है

वो समझ नहीं पा रहे है, दिल की बातों को

हम उनके दिल से आजकल दफ़ा हो गये है

समय क्या बदला, वो हमसे बदल से गये है

वो आजकल समय से ज़्यादा तेज़ हो गये है


वो जान नहीं पा रहे है, मेरी इस मोहब्बत को

जिसके लिये वो आजकल एक ख़ुदा हो गये है

मोहब्बत को यूं ठुकरा देना तो लाज़मी नहीं है

वो आजकल मोम से पत्थर दिल के हो गये है


कोयला भी यारों किसी दिन गोरा हो सकता है

हम आजकल कोयले से ज्यादा काले हो गये है

उनसे मोहब्बत करने की सज़ा क्या ख़ूब पाई है

हम शबनम की बूंदों से जलकर ख़ाक हो गये है


एक न एक दिन तो पत्थर पर भी समां जलेगी,

इसी उम्मीद पर हम अमावस के चाँद हो गये है

वो हर रोज ही चुप रहकर, सीने पर चोट करते है

हम उनकी खामोशी की चोट से पागल हो गये है


वो ज़ख्म देते है आजकल कुछ नमक डालकर

हम टूटे हुए आईने के एक प्यारे अक्स हो गये है

इतना भी मत तड़पाओ की जान ही निकल जाये,

वो आजकल ख़ुद की ही जान के दुश्मन हो गये है


कुछ न कुछ मोहब्बत तो तुमने भी की होगी सनम,

तेरे इंतज़ार में हम क़ब्र में भी रोते हुए ही सो गये है



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