तुम नहीं तो गम नहीं
तुम नहीं तो गम नहीं
सिरहाने के सहारे तुम्हारी चाय की प्याली नहीं,
तुम्हारी अधूरी किताब है, जो बस ताकती रही,
रात जिन आँखों ने तुम्हे याद किया,
सुबह से आज, वो आँख नम है,
तुम नहीं, तो ग़म नहीं पर तुम नहीं,
तो बस खुशी कम है दिल का ग़ुबार और यादें,
बस आपस ही में बतियाती है, सामने तुम्हारे आखिर क्यूँ,
बस ये आँखें ही बोल पाती है,
उम्मीद है सब इज़्हार कर गई, या तुम बताओ,
कुछ कम है ? तुम नहीं, तो ग़म नहीं पर तुम नहीं,
तो बस खुशी कम है अभी भी मैं चुप हूँ,
तुम होती, तो शायद चुप ही होता,
नींद अभी आँखों से जुदा है, सोता तो भी
तुम्हारे सपने ले रहा होता, तुम्हारी बाहों में सारी दुनिया है,
बिना तेरे ये सब, वहम है, तुम नहीं,
तो ग़म नहीं पर तुम नहीं, तो बस खुशी कम है न बंधा,
न रोका ,और न ही मैं झुका यहाँ, न पर्वत, न दरिया, न राजा,
न सेवक, कोई मुझे टोके यहाँ, न कही ताला,
न कहीं परकोटे धजे, फिर भी जाने क्यू ये शहर बंद है,
तुम नहीं, तो ग़म नहीं पर तुम नहीं, तो बस खुशी कम है
कुछ तो हो सकता था शायद, शायद वो इससे तो बेहतर होता,
ये धुंधले कोहरे में छुपा सा कल, शायद आज से भी जगमग होता,
उस वक़्त भी सूरज से ज्यादा तेज़ मुस्कान होगी तेरी,
ये मेरा घमंड है, तुम नहीं, तो ग़म नहीं पर तुम नहीं,
तो बस खुशी कम है।

