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Anurag Negi

Romance

2.4  

Anurag Negi

Romance

तुझे भूल जाना चाहता हूँ

तुझे भूल जाना चाहता हूँ

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421


हार गया मैं और जीत गयी है तू,

अब मैं तुझे किसी और का पाता हूँ,

हाँ चाहता तो नहीं था कभी,

पर अब तुझे भूल जाना चाहता हूँ।


इंतज़ार खत्म हुआ वर्षो का,

हाथों को अब भी खाली पाता हूँ,

सपना था जो तुझे पाने का मेरा,

उस सपने को भी भूल जाना चाहता हूँ । 


उम्र के ऐसे मोड़ में खड़ा हूँ,

हर दिन तुझे खोता जाता हूँ,

हो चुकी है शायद तू किसी और की,

मैं भी किसी और का हो जाना चाहता हूँ । 


कुछ नहीं बदला आज भी,

मैंं खुद को उसी राह में पाता हूँ,

काबिल हूँ आज मैंं तुझे पाने के,

फिर भी एक बार तेरी हाँ चाहता हूँ । 


अब हक़ नहीं मुझे अपनी दिल की बात बताने का,

लिखे इन शब्दो से तुझे सब बताता हूँ,

कभी न कभी तो पढ़ेगी तू जज्बात मेरे,

इसी उम्मीद में मैं हर दिन लिखता जाता हूँ । 


समझ मुझे एक पल के लिए तू,

ये सिर्फ शब्द नहीं जज्बात हैं मेरे,

देर ना हो जाये तेरा मुझे समझने में,

यही बात तुझे हर बार समझाता हूँ । 


हरा दिया है तूने मुझे धोखा देकर,

फिर भी तुझे खुद से ज्यादा चाहता हूँ,

एक बार आ जा वापस मेरे,

दिए तेरे धोखे को भूल जाना चाहता हूँ। 


आस रखूँ या न रखूं, ये तू खुद मुझे बता दे,

अब हर बारिश में तेरा ही ख्याल पाता हूँ,

हाँ तकलीफ़ तो होती है तुझे याद करने में,

पर अब तुझे भूल ही जाना चाहता हूँ। 


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