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Anurag Negi

Abstract

3  

Anurag Negi

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तेरा सपना मेरी खुशनसीबी

तेरा सपना मेरी खुशनसीबी

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427


देखता हूँ तुझे अक्सर अपने सपनों में,

न जाने तू दूर क्यो खड़ी रहती है ?

सामने रहती है तू हमेशा मेरे,

फिर भी मुझसे कुछ नहीं कहती है। 


दूर खड़ी रहकर भी तू हमेशा,

बस मुझे ही देखती जाती है,

आ जाता हूँ जब भी करीब कुछ कहने को,

न जाने तू कहाँ गुम जाती है।


ढूंढता हूँ फिर मै तुझे हर जगह, हर मौसम में,

मेरी हर सांस तुझे ही बुलाती है,

सपनो में भी मांगता हूँ मै तुझे खुदा से,

और तू अपनी आंखों से गुस्सा दिखाती है। 


सपनों में भी अधूरा हूँ तेरे बगैर,

ये बात मै तुझे वहाँ भी बताता हूँ,

सुनती है तू बस मेरी बातों को,

और मै तेरी आवाज सुनने को तरस जाता हूँ। 


मांगता हूँ फिर मैं तुझे हर मंदिर में,

अपनी हर मन्नत में तेरा ही ज़िक्र लाता हूँ,

आती है जैसे तू चुपके से मेरे सपनों में,

क्या मैं भी कभी तेरे सपनों में आता हूँ ? 


बहुत बाते दबी हैं दिल में,

हर पल का किस्सा तुझे बताना है,

आएगी अब जब तू मेरे सपनों में,

बस वही तुझे भी मेरा हो जाना है। 


दूर मत रहना अब तू सपनों में मुझसे,

वही बस तू मुझे थोड़ा हक़ दे दे,

देर तक रहना अब तू मेरे सपनों में,

और बदले में तू मुझसे मेरा सब ले ले। 


लेकर मुझसे सब कुछ मेरा,

मैंने अपनी परी का इंतजार किया है,

कैसे हार मान लूँ अपने डर से,

तुझे ही तो मैंने अपना दिल दिया है।


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