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Anurag Negi

Abstract

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Anurag Negi

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मृत्यु ही मंजिल

मृत्यु ही मंजिल

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आँखों में सपने हैं उन्हें

होठों की मुस्कान होने दो,

सूरज अभी डूबा नहीं ,

ज़रा सी शाम होने दो ।

साज़िशें रच रहा है जमाना

मुझे मिटाने की,

मैं खुद मिट जाऊंगा एक दिन,

ज़रा मुझे पिनाक होने दो ।


आसमा में जो ये कस्ती है,

उसे रेगिस्तान की बरसात होने दो,

छाँव है जैसे कुदरत की जहान में,

ज़रा मुझे भी किसी की छाँव होने दो ।


सम्मान का मोह नहीं है जैसे विभूती को,

बस मुझे भी सबके पास होने दो,

एक आशियाना दे सकूँ मैं इस जहान को,

ज़रा मुझे भी किसी की आस होने दो ।


झुक रहा जमाना जैसे अधर्म के आगे,

मेरे कर्मो को ज़रा इनाम होने दो,

बदनाम भी हो जाऊँगा मैं खुद

एक दिन इस जहान में,

जरा पहले मेरा नाम तो होने दो ।


जन्म दिया है विधाता ने सबको,

अंत मे मृत्यु तक पहुँचाने को,

आ रहा है वो सबके कर्मो की धुन में,

ज़रा उसे अपनी रफ्तार खोने दो ।


आग सा बह रहा है रहूँ रगों में,

उसे पुण्य की झंकार होने दो,

निकल चुका है काल अपने रथ में,

अब उसे अपनी आखिरी मंज़िल होने दो ।



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