फिक्र नहीं क्या कहता जमाना
फिक्र नहीं क्या कहता जमाना
झूठ के आईने में दुनिया दिखा रही तस्वीर तेरी बेवफाई की,
पर ये फिजाएं, हर लम्हा गवाही दे रही हैं, तेरी सच्चाई की,
यकीन है तेरी हर बात पर, फ़िक्र नहीं क्या कहता ज़माना,
तू बसती है इस दिल में जहांँ से खुशबू आती तेरी वफ़ा की।
मेरी ज़िंदगी करने रोशन, फलक से तू उतर आई जमीं पर,
सार्थक हुआ ये जीवन रोशनी मिली जो तेरी मोहब्बत की।
तूने थामा हाथ उस वक़्त मेरा ,जब अपनों ने रुसवा किया,
जो साथ नहीं खड़े हैं, क्यों मैं परवाह करूंँ उस दुनिया की।
अब तो तुम ही मेरी दुनिया, तुमसे ही गुलशन है महकता,
जीवन के मधुमास में तुम बहार तुम्हीं पीयूष धड़कन की।
जब भी विचलित हुआ है मन, जीवन के किसी मोड़ पर,
तुम ख़ामोश यामिनी बन आई, ओढाने चादर सुकून की।
देखा है तुम्हारी आंँखों में, मोहब्बत की सच्ची तस्वीर को,
कहो और क्या प्रत्यक्ष प्रमाण दूँ मैं, तुम्हें तुम्हारी वफ़ा की।
दुनिया की बातों से मोहब्बत की गली से रुखसत न होना,
मैं तुम्हें ही सोचता हर पल और तुम्हें फ़िक्र इस दुनिया की।
आखिर कोई तो बंधन कोई तो रिश्ता है हमारी सांँसों का,
ऐसे ही नहीं जुड़ी इस जन्म में कड़ियांँ हमारी किस्मत की।
दुनिया की बातों का मंतव्य, कहांँ किसी को समझ आया,
दुनिया वैसे भी कद्र नहीं करती, मोहब्बत करने वालों की।