STORYMIRROR

सोनी गुप्ता

Abstract Romance

4  

सोनी गुप्ता

Abstract Romance

सिलसिला थम गया

सिलसिला थम गया

1 min
277

जाने क्यों पुरानी उन बातों का सिलसिला थम सा गया, 

हमारी मोहब्बत का वो बढ़ता हुआ कारवां रुक सा गया, 


जिसे हर पल ख्वाबों में सिर्फ तुम्हारा चेहरा नजर आता , 

आज हमसे मिलकर भी जाने क्यों नजरें वो झुका गया, 


वो तुम्हारे जज्बात वो ख्याल सब जाने किधर चले गए, 

आसमान में चमकता वो चांद भी हमसे बेवफा हो गया, 


जो हमारा घंटों इंतजार करते हुए कभी थकते नहीं थे, 

मिलकर चंद पलों में ही जाने क्यों उनका दिल भर गया, 


जाने कहाँ, किस काम में मसरूफ हो गया हमें छोड़ कर, 

हमसे बातों का, मुलाकातों का सिलसिला थम सा गया, 


हम तो यहाँ बस अपने दर्द को छिपा कर मुस्कुराते गए, 

शब्दों को छोड़कर आंखों से बात करना जरूरी हो गया, 


मंजिलें दूर गई, सभी सुनहरे ख्वाब कहीं छूट से रहे हैं, 

हर ख्वाबों का सिलसिला जैसे रोज का खबर हो गया,


मेरे हृदय की व्याकुलता, जो तुम्हारी आंखें सुनाती थी, 

उन व्याकुलता भरी आंखों में प्यार हमारा कहीं खो गया, 


आज भी उनके इंतजार में निगाहें द्वार पर खड़ी रहती है, 

जब भी कभी कोई आहट सी हुई और दिल थम सा गया, 


एक किस्सा जो यहाँ शुरू हुआ था तुम्हारे बातों से कभी, 

आज तुम्हारे उस हर किस्से का पन्ना-सा बंद क्यों हो गया, 


दिल संभाले नहीं संभलता, सब बदलता जा रहा है यहाँ, 

जाने आज तुमसे ये दिल का रिश्ता सिमट सा क्यों गया I


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract