प्रेम पाती
प्रेम पाती
वह खत जो लिखे थे तुझे जब भी,
दर्द में लिपटे हुए जज्बात पिघलते थे कागज पर,
तो सारी कायनात में मेरी उल्फत की
खुशबू फैल जाती थी।
आंखों में सैलाब मोहब्बत का उमड़ता था और,
चंद बूंद अश्क की स्याही में घुल जाती थी।
वह अल्फाज नहीं ,हाले ए दिल था मेरा,
जिसको बयां करना मुश्किल था।
फिर भी हम अपने को संभालते हुए
भर देते थे कागज को मोतियों से।
अपना ऐलान ए इश्क कर जाते
कुछ पहुंचाए तुझे,
कुछ रह गए मेरे पास वो खत।
पर वक्त की आंधी ने सितमगर तुझे
क्या बना दिया आज उन्हीं खत को जलाने पर
अमादा है दिल मेरा
जो कभी बेपनाह इश्क करता था तुझे।
जब तू काबिल नहीं मेरी पाक मोहब्बत का
तब तेरी निशानी को मिटाना अच्छा है।
हलचल तो होगी बहुत,
तू जिंदगी का हिस्सा था मेरी।
पर खुदा की रहमत को तुझ पर
निसार नहीं कर सकती
तेरे नसीब में नहीं मेरी उल्फत
उस पर किसी तकदीर वाले का नाम लिखा है।