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Pooja Agrawal

Abstract Tragedy

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Pooja Agrawal

Abstract Tragedy

कोहराम

कोहराम

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जिंदगी की दौड़ धूप में हर कोई है फिक्रमंद

न दिन में चैन ना रात में आराम होता है

इंसानियत का धर्म कौन अपनाऐ

हर मुँह पर मेरा रहीम मेरा राम होता है

मुक्द्दस उल्फत को सूली पर चढ़ाता है जमाना

आगाज़ तो होता है कहां अंजाम होता है

धर्म के ठेकेदार आग लगाकर मजे लेते हैं

रोज तमाशा लोकतंत्र का सरेआम होता है

दम तोड़ती है रोज ख्वाहिशें गरीब की

और अमीरों के हाथों में जाम़ होता है

शह़ादत करने वालों को कौन याद करें

कत्ल करने वालों का यहां नाम होता है

झूठ बोलने वाले की आंखों में शर्म नहीं

सच बोलना वाला बदनाम होता है

अहम में रोज बदलते हैं रिश्ते

घर घर नहीं होता मकान होता है

हर शख्स दिखावा करता है शांत चित्त का

और दिल में उसके कोहराम होता है।


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