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Meena Mallavarapu

Abstract Inspirational

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Meena Mallavarapu

Abstract Inspirational

समुंदर किनारे

समुंदर किनारे

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बैठी समंदर किनारे -रेत पर - बस दो पल

उदास मैं, हारी, ज़िंदगी से अब उदासीन

उसकी उफ़न में दिखी अपनी तस्वीर,अपने संघर्ष 

अपनी परेशानियां,अपना चेहरा,हंसता रोता


उठती गिरती, गिरती उठती लहरें 

 न थकती, न थमतीं, न सुस्तातीं

 निरंतर,अविराम, एकाग्र 

हर बंधन से जूझती, टकराती-


 न रुकने, न थमने के पीछे भेद हैं गहरे

किनारे से टकराना भी कर देता है

 उसे आश्वस्त, अजेय, संतुष्ट 

 क्या यही है उसका लक्ष्य 


उस की सार्थकता का परिचय

उस के अस्तित्व की परिभाषा 

बैठी रही घंटों इन्हीं ख़यालों में खोई

था लहरों का शोर या लोरी

 कहना मुश्किल है मगर

जानती हूं, मैं भी तो हूं

हिस्सा उसी शोर का,उसी बहाव का।


दूर खड़ा वह प्रकाश स्तम्भ देता संदेश

मैं हूं यहां खड़ा- खड़ा तुम्हारे साथ

 हर भूले को राह दिखाऊं

 अंधेरों से आगे पहुंच है मेरी-

छोटा सा दिया भी हो, लगने न दूं ठेस

सीखा है मैंने जूझना आंधी तूफ़ानों से


 देख न पाऊं किसी को टूटते,हारते-

मैं हूं साथ सदा सभी के 

मैं ही नैया, मैं ही मांझी, मैं ही पतवार

 जुड़ जाओ तुम भी जीवन के ताने बाने से

 है मेरी दृष्टि तुम्हीं पर, होगा नहीं कभी अनिष्ट 

खोलो अपनी आंखें,देखो चारों ओर

 कैसे दिलाऊं विश्वास तुम्हें 


यह धरती यह आकाश तुम्हारा 

 यह ब्रह्मांड तुम्हारा, लो आत्म बल का सहारा 

हारना नहीं तुम्हें,करो स्वीकार चुनौती जीवन की

 है मेरा अभय हस्त सदा तुम्हारे सर पर

रहेगा हर पल यही तुम्हारे साथ 


 हार और जीत न हों हावी तुम पर

यह मेरा अभय हस्त रहेगा सदा तुम्हारे सर पर

अभय हस्त, वह अभय हस्त 

 सपना था या था वह सच

 मुझे मालूम नहीं

 मगर आज भी वह अभय हस्त 


 करता मुझे विश्वस्त

लौट गए कदम वह मेरे

ज़िन्दगी की तरफ़

वह रात,वह मंज़र,वह हाथ

है आज भी मेरे जीवन का सच

वह अभय हस्त देगा हर पल,हर पल मेरा साथ-

है यही आधार मेरे अस्तित्व का,

मेरे जीवन की नींव।।


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