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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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प्रेम का दूरस्थ स्वरूप

प्रेम का दूरस्थ स्वरूप

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तन का स्पर्श ही प्रमाण है प्रेम का यह कौन कहा करता है 

 प्रतिदिन मेरा मात्र हृदय उनके हृदय से स्पर्शित हुआ करता है.१

हां दूर है मुझसे वो मगर हर क्षण समीप होने का एहसास कराती है

हाल न बताऊं उसे अपना तो वो पगली बेचैन हो

कॉल पर कॉल मैसेज ही मैसेज किए जाती है.२


मेरी रुचि अरुचि वो सब कुछ जानती है 

मेरा मन व्यथित है पता नहीं कैसे पहचानती है .३

मुझे प्रसन्न देख वो आह्लादित हुआ करती है

अपनी चाहत से वो मुझे बार बार प्रभावित किया करती है.४


मेरे क्रोध को मुस्कुराहट से अपनी शांत किया करती है

 मेरे मुंह को हास परिहास करा क्लांति दिया करती है.५

क्या कर रहे हो कहां हो कॉल करो न मुझे बात करनी है

ऐसे मैसेज ऐसी बाते उनकी तो मेरे साथ दिन रात चलनी है.६


किताबों को और मुझे एक समान समय दिया करती है

हां गुस्सा हो जाती है कभी कभी तब मुझे डांट पड़ा करती है.७

हां कभी जब देर हो जाती है उनका मैसेज आने में

धड़कनें मेरी भी तीव्र गति में चला करती है

मन नहीं लगता किसी काम में श्रद्धा नहीं रहती किसी के वचन में

यह आंखें उ

नके मैसेज के इंतजार में रहा करती है.८


तुम ऐसे ही रहना मत जाना दूर वरना मैं मर जाउंगी 

कितना करती हो प्रेम पूछने पर कहती है कह न पाऊंगी .९

विकल्प उनके पास भी है मेरे पास भी लेकिन विकल्प की इच्छा कौन करता है

कौन करेगा प्यार निः स्वार्थ होकर मुझे उनके जैसे जिसे सिर्फ मेरी समीपता में ही सारा सुख मिलता है .१०


इस दिखावे के समाज में मैं हमेशा से चाहता था कि वास्तविकता के समीप रहूं 

न मिले कभी न पास से देखे कभी न शारीरिक स्पर्श कभी फिर भी इतना प्रेम अब मैं क्या ही कहूं .११

कैसे मानूं यह प्रेम नहीं झूठी है वो जो मुझसे दूर होने के भय मात्र से आंसू बहाया करती है 

प्रेम के शुद्ध स्वरूप का प्रदर्शन कर वो मुझे बार बार आश्चर्यचकित कर जाया करती है.१२


एक दूसरे के स्वाभिमान की रक्षा हम कायिक वाचिक मानसिक किया करते है 

हृदय विदीर्ण हो अपमानित हो ऐसे कटु वचनों का आश्रय लेने से डरा करते हैं.१३

हां मुझे भी प्रेम उनसे है भला ऐसे प्रेम मूर्ति से प्रेम कौन न करेगा 

तुम सब तन में प्रेम खोज रहे हो मेरा उनका प्रेम तो हृदय से हृदय में बहेगा .१४


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