लड़के
लड़के


मैं लड़का हूं
मैं लड़का हूं और लड़का होने में मेरी कोई भागीदारी नहीं है कि में लड़का हूं
मैं ऊपरवाले का बनाया हुआ वो पुतला हूं जिसके हिस्से में हमेशा ही कदम कदम पर समझोते ही आए है
मुझे बचपन से ही सीखा दिया जाता है की लड़के हो रोया नहीं करते और इसी बचपन की सीख के कारण न जाने कितने ही गमों को अपने अंदर अंदर दबा कर रखता हूं
मेरे लिए खुश रहने से ज्यादा खुश दिखना ज्यादा जरूरी हो जाता है और इसी दिखावे को दिखाने के लिए मैं हमेशा अपने चहरे पर झूठी मुस्कान का मुखौटा लगाए रहता हूं
मैं सबको खुश तो रखता हूं मगर मेरे खुश होने की किसी को परवाह नही है
क्युकी मैं लड़का हूं
और लड़का हूं इसलिए ना जाने मुझे क्या क्या बनना पड़ता है जमाने की नजर में
मेहनती,ईमानदार ,संघर्षशील,सहनशील
और भी ना जाने क्या क्या,इतना सब कुछ करने के बाद भी मुझे अपनी बुराई के सिवाय कुछ भी सुनने को नही मिलता क्युकी मैं लड़का हूं
मुझ पर लाद दी जाती है जाति है अनगिनत जिम्मेदारिया बचपन से ही
पढ़ाई में अच्छे नंबर लाने की
अच्छी नौकरी करने की
अपना घर संभालने की
मां बाप के इलाज की
बहन की शादी की
सबसे हंस कर मिलने की
और ना जाने क्या क्या
और इन सब जिम्मेदारियों को पूरा करते करते मैं छोड़ देता हूं अपनी ख्वाहिशों को,अपने सपनो को मैं मार देता हूं अपनी इच्छाओं को क्युकी मेरे सपने ख्वाहिश और इच्छाओं से ज्यादा जरूरी जिम्मेदारियां होती और उन्हे निभाना ज्यादा जरूरी समझता हूं
क्युकी मैं लड़का हूं ,
मैं सदा ही प्रेम में असफल रहा हूं इसलिए नही की मुझे प्रेम करना नही आता,शायद इसलिए की मुझे प्रेम प्रदर्शित करना नही आया,मुझे नही आया प्यार को जताना
मुझे आया है तो सिर्फ निभाना और इसी अपरदर्शिता की वजह से ना जाने कितनी दफा मैं वंचित रहा हूं कभी अपने तो कभी पराए लोगो से प्रेम पाने में ।
मुझे प्रेम के नाम पर अनेक बार ठुकराया जाता है अनेकोनेक बहानो से
कभी कमाई को देख के,कभी रूप को देख के तो कभी बेरोजगारी को देख कर कभी मेरी जात को देख करऔर भी अनेक बहाने दे कर
पर कभी मुझे मेरा
प्रेम देख कर अपनाया नही जाता
कई बार तो मेरे हिस्से की मोहोब्बत को ब्याह दिया जाता है किसी सरकारी बाबू को, किसी धनवान को, तो किसी मोटी कमाई करने वाले इंसान को ,और मैं भी झूठी हंसी का मुखौटा पहन कर उसे विदा कर देता हूं
क्युकी मैं लड़का हूं
ना जाने कितनी दफा मैने अपनी पसंद की हर चीज खोई है ना जाने कितने समझोते इस बात पे किए है की मेरी तो किस्मत ही खराब है ना जाने कितने ही पत्थर अपने कलेजे पे रखता हूं
क्योंकि मैं लड़का हूं
दिल पर पत्थर रखकर रूंधे गले से नम आंखों के साथ घर से पराया हो जाता हूं
घर चलाने को घर से बेगाना हो जाता हूं
नए शहर जाता हूं दौलत छोड़ कर दौलत कमाने को
एक कमरे को अपना आशियाना बनाता हूं
कई बार तो एक वक्त खाना खा कर भी सो जाता हूं
कई बार चिंता के मारे नींद भी नही आती है
पराए शहर में अपनों को बड़ी याद सताती है
यूं तो कमरे में तनहाई और अकेलापन भी साथ रहता है
सबकी खबर रखने वाला मगर खुद बेखबर रखता है
झूठी मुस्कान से उदासी को छुपा लेता हूं
अकेला जब भी होता हूं आंसु बहा लेता हूं
क्युकी मैं लड़का हूं
मैं अपनी जान से प्यारी बहन को नम आंखों से चौखट से विदा करता हूं
मैं दिल पर पत्थर रखकर कांधा देता हूं मां बाप को जिन्होंने पैदा किया मुझे
कभी अपनो से तो कभी पराए लोगो से
कभी हालातो से तो कभी किस्मत से मैं हर बार हार जाता हूं
क्युकी मैं लड़का हूं
हर परेशानी को किस्मत का आखिरी सितम समझ कर उसके साथ कदम से कदम मिला कर चलता हूं
क्योंकि मैं लड़का हूं
मेरी बहुत बड़ी ख्वाहिशें नही होती बस इतनी सी होती है की कोई मुझे समझे
कोई मेरे लड़के होने का दुख जाने बाप की वसीयत का उत्तरदाधिकारी समझने वाले लोग क्यू ये भूल जाते है की वसीयत में जिम्मेदारी भी मिलती है और उन जिम्मेदारियों को पूरा करते करते जिंदगी पूरी हो जाति है
हक रोने हम लडको को भी दिया जाए
एक अहसान तो हम पर भी ये किया जाए
कोई बात नही ना समझो हमारे दर्द को तो
प्रार्थना है की हमारा मजाक ना उड़ाया जाए।