आश्चर्जनक सिलसिला है
आश्चर्जनक सिलसिला है
अफगानिस्तान से लेकर
यूक्रेन तक
मनुष्य अपनी सम्प्रभुता
और अपने देश की महत्वाकांक्षा
के अन्तर्सम्बन्धों को
तटस्थता से देख रहा है
भयावह नजारों की भीड़ से
वह आश्चर्यचकित है
कभी वो दुनिया को
कभी अपने देश को
देख रहा है
आपस के सम्वाद से
समस्याओं को हल करने की
उसकी परम्परागत सभ्यता
दिख तो नहीं रही है ब्यवहार में
पर उसकी आहट
उसे सुनाई जरूर पड़ रही है
जैसे जीवन
खटखटा रहा है अपना ही दरवाजा।
