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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

"किरायेदार से खबरदार"

"किरायेदार से खबरदार"

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किरायेदार से हो जाओ, खबरदार

जब तक नहीं हो पूरी तहक़ीक़ात

तब तक न बनाये, आप किरायेदार

आजकल अपराधों का बढ़ा संसार


आजकल अधिकतर के किरायेदार

होते है, अपराधों से भरे हुए दागदार

बिना पुलिस प्रमाणिकता के यदि,

देते है, किसे कमरा किराया उपहार


मान लो भविष्य में होगा, विश्वासघात

वो बिना जांचवाला आया किरायेदार

कहीं का नहीं छोड़ेगा हमें यहां यार

इसलिये बन जाओ सब समझदार


माना कि किसे के मन में नहीं झांका

कोई अपना दिल तोड़ देता, रिश्तेदार

पर अधिकतर अपराधों के अंदर तो,

संलिप्त होता है, अनजान किरायेदार


इसलिये जाग जाओ, छोड़ दो लोभ,

मत बनाओ उसे आप किरायेदार

जो न है, किसी परिचय का खास

जुर्म थमे नहीं, कम होंगे, रहे होशियार


रहो सावधान, लगे जुर्म हो सकता है

दो तुरंत सूचना पुलिस को कलमकार

जिससे न हो, जुर्म का सपना साकार

दुनिया बन जाये, खूबसूरत आफ़ताब


किरायेदारों के साथ, तुम आसपास

माहौल से भी रहो सतर्क, होशियार

अपराध का दिखे कहीं भी धुआँ

कानून मदद से कर दो तुरंत, राख


दुनिया कैसे नहीं बनेगी जन्नत द्वार?

गर खत्म हो जाये न, यह जुर्म-संसार

हर जगह यूँ ही खिलता रहेगा, गुलाब

सत्य, अहिंसा से होगा जग लाजवाब



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