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Rajeev Rawat

Tragedy

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Rajeev Rawat

Tragedy

मैं सिरफिरा हूं--दो शब्द

मैं सिरफिरा हूं--दो शब्द

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यूं तो बचपन से अपनी भावनाओं को, 

कागज के पन्नों को गोदता हुआ कुछ न कुछ लिखता था-

और कोई पढ़े या न पढ़े, 

अपने लिखे को शब्दों को बड़े चाव से कई बार स्वयं ही पढ़ता था-

न मात्राओं का ज्ञान था और न ही शब्दों का चयन-

मानो चलता था पजामा के ऊपर टाई को पहन-

किसी की आंखों दर्द से गिरते हुए आंसुओं को, 

आज भी अपनी उंगलियों से पौछ देता हूं-

जिंदगी दूसरे के इशारों पर नहीं 

अपनी राह स्वयं बना कर चलने की सोच देता हूं-

मैं नेता नहीं हूं 

जो वोट और नोट की खातिर, 

अपना दिल, संबध और जमीर बेच देता हूं-

और न ही कथित संत महात्मा हूं

जो डरा कर स्वर्ग - नर्क के चक्कर से, 

दूसरे की जेब से रूपये ऐठ लेता हूं-

न वह लेखक हूं 

जो राज दरवार में बन कर भाडं गीत गाता है-

और न ही

दूसरे लाचार लेखक के भावों को, 

अपना कह कर बाजार में बेच आता है-


जिंदगी जीने का यह फलसफा, तिकड़म

आज तक नही समझ पाया हूं-

इसलिये मुफलिसी के दौर से न निकल पाया हूं-

लेकिन मजे की बात न तब डरा था

और न अब तक डरा हूं-

लोग कहते हैं तो कहते रहें

मैं दिल की लिखता हूं शायद इसलिए उनकी नजरों में सिरफिरा हूं।


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