"डरावना युग"
"डरावना युग"
आ गया आजकल कैसा,डरावना युग
व्यक्ति ही व्यक्ति पर चला रहा चाबुक
लूट रहे है,आजकल अंधे लोग यूँ ही,
अपना नाम बदलकर वो नयनसुख
रो रहे है,बेचारे आंखों के ये उजाले
अंधेरे के आगे लोग रहे है,जो झुक
आ गया आजकल कैसा,डरावना युग
आईने में कैद हुई है,तस्वीर नाजुक
ऐसे हो,वैसे हो,लोग न रहे है,रुक
पैसे मद में तोड़ रहे रिश्ते,अद्भुत
बेईमानी से पैसा कमा,समझ रहे,
आजकल खुद को होशियार,बहुत
बेटी सभा मे नाच रही,पिता सम्मुख
बेटे पिता को आंख दिखा रहे,बहुत
आ गया आजकल,कैसा डरावना युग
अपना ही लहूं खराब कर रहा,कुल
खत्म न हो रही,लोगो की सुरसा भूख
जिधर देखो उधर,मनु बोल रहा झूठ
सच को मान रहे,सब ही कमजोर भूत
झूठ सबके भीतर आज बेइंतहा मौजूद
आ गया कैसा आजकल डरावना युग
हर जगह ही दिख रहा है,बुरा कलयुग
सब आजकल स्वार्थ से रखते ताल्लुक
बिना स्वार्थ,आज कोई न दिखाता मुख
हर रिश्ते में आज दिख रहा,बस दुःख
इंसान पीस रहा है,इस माया में साबुत
सब जानते एकदिन खत्म होगा,वजुद
फिर भी पल्ले बांध रहे,पाप गठरी बहुत
आ गया कैसा आजकल डरावना युग
रब भूल गये,खुद को मान रहे,सबकुछ
वो खुदा भी मनुष्य को बनाकर है,मूक
वाह रे मनु इसलिये बनाया,मैंने तेरा बुत
तुझे इसलिये बनाया,तू सर्व हित करे
नेकी के काम से करे,तू मुझको खुश
तू इंसान,जन्म-मरण से होगा मुक्त
अद्भुत आनंद का मिल जायेगा,घूंट
फिर साखी कैसा ही डरावना हो युग
बालाजी भक्ति से,खत्म होते हर दुःख
अमावस भी बन जाती,पल में पूनम
जब साथ आशीर्वाद होता है,पवनसुत।
