कितना डरावना है शक्ल मिलती है मुझसे मेरी आत्मा है वो कह रही है मुझसे कितना डरावना है शक्ल मिलती है मुझसे मेरी आत्मा है वो कह रही है मुझसे
वो क़िस्सा अफ़ग़ान का टैगोर था भा गया, ना जाने क्यों मेरी रूह में समा गया। वो क़िस्सा अफ़ग़ान का टैगोर था भा गया, ना जाने क्यों मेरी रूह में समा गया।
सपने रहे मनभावने सदा दिन सफल। सपने रहे मनभावने सदा दिन सफल।
आ रहा था बन के इंसान वो मेरा कृष्ण, गिरिधर गोपाल। आ रहा था बन के इंसान वो मेरा कृष्ण, गिरिधर गोपाल।
हाँ अब मुझे खामोश हो जाना चाहिये ये जो डर है लोगों को खो देने का, ये जो डर खुद की रूह को ... हाँ अब मुझे खामोश हो जाना चाहिये ये जो डर है लोगों को खो देने का, ये ...
अदृश्य दरवाज़ों,खिड़कियों से दाख़िल हो जाता घरों में एक डर , रूप बदल बदल कर। अदृश्य दरवाज़ों,खिड़कियों से दाख़िल हो जाता घरों में एक डर , रूप बदल बदल कर।