अनकहे अल्फाज़
अनकहे अल्फाज़
अब लगने लगा है,
मुझे खामोश हो जाना चाहिए
दुनिया की बनाई इस भीड़ से
मुँह मोड़ लेना चाहिए
हाँ मुझे खामोश हो जाना चाहिए।
न करनी है अब वो नौकरी
न अब वो पढ़ाई करनी है।
ना ही अब वो रोजमर्रे की
भागदौड़ करनी है।
हाँ मुझे अब खामोश
हो जाना चाहिए।
दूसरों की खुशी का ख्याल
रखते रखते खुद को भूलने लगी हूँ।
ज़िन्दगी की दी
ज़िम्मेदारियों में
क़ैद होने लगी हूँ।
हाँ अब मुझे खामोश
हो जाना चाहिए।
आज का एहसास
बहुत डरावना था,
जब आईने में अपने आप को
अपने लिए रोते देखा,
आलम ये था, मैं चीखना चाहती थी,
ओर उस वक़्त
अपने आप को घुटते
देखा।
हाँ अब मुझे खामोश
हो जाना चाहिए।
कब तक यूं ही अपनों (दोस्तो) को
अपने दुखों से परेशां करूँ।
आखिर कब तक ?
हाँ मुझे अब खामोश
होना जाना चाहिए।
मेरे ख्वाब अधूरे सही,
मेरा बाँकपन अधूरा सही
मेरी चुनौतियाँ अधूरी सही।
हाँ अब मुझे खामोश
हो जाना चाहिये
ये जो डर है लोगों को खो देने का,
ये जो डर खुद की रूह को
सताने का जो कहते तो
कुछ नहीं पर तड़पते हैं।
अब बस अपने बाँहों को फ़ैलाकर
बारिश की हर बूंदों को
महसूस करना है।
उड़ना भी है उन
आज़ाद पंछियों की तरह
हाँ अब मुझे खामोश हो जाना चाहिये
बस अब मुझे खामोश हो जाना चाहिए।