एकांतवास
एकांतवास
मैं अपने एकांत में खुश हूं अब
न किसी के आने की ख़ुशी है न किसी के जाने गम है ।
जो जहाँ रह गया है , जो जहाँ खो गया है
उसे उसी जगह छोड़ना बेहतर है अब।
ऐसा भी नही है कि एकांत में किसी की जरूरत नही होती है।
बात तो बस ये है की अपना सा कोई लगता नही।
मैंने वो तमाम रिश्ते ख़त्म कर दिए,
घुटन हुई लेकिन साँसे पहले से आज़ाद चलती हैं।
यूँ भी कई बार हुआ के ,
बहुत हुआ बस आज आखरी है मेरे बर्दाश्त की हद।
हदो ने भी यही कहा बेहद अभी औऱ भी बाकी है।
कभी कभी तो लिखते हुए ये सोचती हूँ ,
मैं आज भी उसी पिंजरे में कैद हूं,
जहाँ मेरे सपनों ने आज़ाद होने के सपने देखे थे
कुछ ख्वाब तुम्हारे साथ देखे कुछ ख्वाब तुम्हारे लिए देखे।
ख्वाबो का टूटना भी लाज़मी था
आखिर दिल ही तो है।
कितनी बार तो ये भी हुआ ,
लोग मेरे अंदाज पढ़कर कहते है ,इतना गहरा सोचती कैसे हो?
पर किसी ने ये कभी नही पूछा तुम्हारे अंदाज़ में
इतना दर्द किस तरह छुपाती हो,
हंसकर यही जवाब देती हूं ।
जाते वक्त उसने कहा था
तुम्हारी स्माइल दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज़ है।
इसलिए हमेशा मुस्कुराती हूँ,
वो गलत न हो जाये इस बात का ख्याल रखती हूँ।