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Sweta Kumari

Others

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Sweta Kumari

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टुकड़ों की जिन्दगी

टुकड़ों की जिन्दगी

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हम कितना कुछ खो देते है सिर्फ एक सुकून

के ख़ातिर,

वो सुकून भी हमे टुकड़ों में मिला करती है,

भाग रहे है ज़रूरतों की तलाश में वो भी

हमे टुकड़ों में मिल रही है ।।


कभी कभी तो दिल सोच के घबरा जाता है,

ऐसा क्या पा लिया जिसके खोने का डर

सताता है, ऐसा नहीं है कि मुश्किलें पहले नहीं थी,

ऐसा नहीं है कि इच्छाएं पहले नहीं थी

पहले और अब में उम्र का फासला है।।


मंज़िलें उस वक़्त भी हुआ करती थी

आज भी है बस मंज़िलों ने रास्ता बदल लिया

पहले शाम होते ये घर को लौटते थे

अब शाम होते अपने आप में लौट आते है।।


लोग कहने लगे है हम बदलने लगे है

कैसे न बदले खुद को, ज़िन्दगी हर मोड़ पे

नया इम्तिहान जो लेती है

हम भी तो एक कदम आगे बढ़ते है हर

इम्तिहान के बाद ।। 


हम ही क्यों बदले लोगों की उम्मीद कायम

रखने के लिए कोई हमारे लिए भी तो

खुद को बदल के देखे

हमारे अंदर आज भी एक बचपन है जो

फिर से ढलते दोपहर के बाद खेलना चाहता है

फिर से अपनी वही पुरानी टोली के साथ।।


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