स्त्री हूँ मैं
स्त्री हूँ मैं
स्त्री हूँ मैं
मुझे निर्बल व शक्तिविहीन ना समझना
कमज़ोर नहीं अनंतकाल से आदिशक्ति हूँ मैं
मैं ही दुर्गा, पार्वती हूँ मैं, मैं ही लक्ष्मी, सरस्वती भी मैं
रुक्मिणी, राधा, रम्भा, मैं, सीता भी मैं, उर्मिला भी मैं
हूँ मैं रानी पदमावती, झाँसी की मणिकर्णीका भी मैं
मैं बाबुल की नन्ही परी, इक माँ भी हूँ मैं
मैं ही सृजनकर्ता, पालनकर्ता भी मैं
तुम्हारी पूरक, हमसफर, अर्धांगिनी हूँ मैं
हूँ मैं एक गृहस्थ गृहणी, परिवार पालक भी हूँ मैं
एक भावुक मर्यादित महिला के पीछे छिपी
दृढ इरादे रखती हुई हठी परिश्रमि भी हूँ मैं
ये ना समझ लेना, की मुझे अकेले चलना नहीं आता
या फ़िर ख़ुद की ख्वाइशों से नहीं है मेरा कोई नाता
चाहूँ तो क्षण भर में ही
अपना स्वच्छन्द अस्तित्व स्थापित कर सकती हूँ मैं
मगर सबको साथ लेकर चलते हुए
अपने परिवार को एक सूत्र मे बांधे रखने की
प्रतिज्ञा लिए हूँ मैं
केवल इसीलिए तुम्हारी अपेक्षाओं की सीमाओं मे
ख़ुदको सीमित रखे हूँ मैं
किन्तु मेरे अस्तित्व व आत्मसम्मान को
ज़रा भी कम आंकने की भूल ना करना
स्त्री हूँ मैं ये कहकर मेरी रेखाएं चिन्हित करने वालो
याद रखना ! किसी भी अनुचित बंधन मे
बँधे रहने को बाध्य नहीं हूँ मैं
और तुम्हारी सीमा रेखाओं से परे हूँ मैं
वो तो बस तुम्हारे मान की खातिर तुम्हारे बंधनों को
तुम्हारा प्रेम समझ, ख़ुद ही उस दायरे मे सिमटी हूँ मैं
वरना तो गगन से भी परे है मेरी लक्ष्मण रेखा
जिसे पार करने मे ज़रा भी हिचकिचाती नहीं हूँ मैं
कठिन परिस्थिति व परीक्षा से कभी घबराती नहीं हूँ मैं
चाहे कितनी भी विकट परिस्थिति आ जाए
हर मुश्किल से डटकर लड़ने का जिगर रखती हूँ मैं
क्यूँकि कोई अस्तित्वहीन, अबला, असहाय औरत नहीं
इक निश्छल, निडर, निस्वार्थ, निधड़क स्त्री हूँ मैं।
