बढ़ती उम्र कैद नहीं उत्सव है
बढ़ती उम्र कैद नहीं उत्सव है
कुछ और रोशन होता है सूरज रोज मेरा
नीला आसमां कुछ नए इन्द्रधनुष सजाता है
सुर्ख फूलों और पत्तियों की बनावट देख मुस्कुराती हूँ मैं
चाय की चुस्कियों के बीच तितलियों को निहारा जाता है
बच्चों को छूट देकर मैंने कुछ और प्यार पाया है
भोजन प्रबंधन करके किचन से थोड़ा ध्यान हटाया है
आईने के आगे नहीं लगाती अब घंटों सजने में
खुद को इस उम्र के पड़ाव में मैंने परिपक्व पाया है
थोड़ी सी धूल, थोड़ी सी सिलवटें चादर की
नहीं परेशान करती, मुझे बिखरी हुई अलमारियाँ
दोस्तों से जुड़ी होते हुए, गपशप से मन हटाया है
अब ये सारा वक्त ख्वाहिशें साकार करने में लगाया है
कभी कविता कभी कहानी को मनोभावों से अलंकृत करती हूँ
संकीर्ण विचारधाराओं के पिंजरे तोड़ स्वच्छंद विचरण करती हूँ