सतरंगी खिलौना
सतरंगी खिलौना
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निर्मल निश्चल शैशव मेरा,
अठखेलियाँ सी करता है।
कल्पना कि उन्मुक्त उड़ान भरता मन,
नभ में स्वच्छंद विचरण करता है।
छल प्रपंच से कोसों दूर बालपन,
भेदभाव से अनभिज्ञ है।
ना करता अवहेलना किसी की,
ना किसी के प्रति द्वेष है।
मन में तुम्हारे भी बिलखता बालक,
ईश्वर का स्वरूप है।
थमा दो उसको सतरंगी खिलौना,
जिसमें प्रेम, सद्भाव, सौहार्द, निहित है।
क्षण भर में अनमोल उपहार,
व्याकुल मन को सहज कर जाएगा।
जीवन की बगिया महकेगी,
मन पुलकित, प्रफुल्लित हो जाएगा।