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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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मतंग के राम का मिलन

मतंग के राम का मिलन

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कल भी तो मिलन था हमारा

आभासी माध्यमों से तमाम अंजाने लोगों से

पर आज आभासी दुनिया से आगे बढ़ते हुए

आमने सामने मिलन की वो सुखद अनुभूति

सिर्फ वे सैकड़ों लोग ही कर सकते हैं


जो एकत्र हुए थे राम की पावन भूमि पर

महज एक आमंत्रण पर

एकत्र हुए थे राम के चरणों में

अपने शब्द सुमन समर्पित करने

पर चाहकर भी मिलन की अनुभूतियों को

शब्दोद्गार नहीं दे सकते हैं।


बहाना बना अयोध्या की पावन भूमि पर

आयोजन था "मतंग के राम" का

सूत्रधार बने रामभक्त आर. के. तिवारी "मतंग"

सौ से अधिक आभासी रिश्तों के

वास्तविक मिलन का गवाह बना


राम वाटिका, दिगंबर अखाड़ा का वो हाल

जहां जुटे देश के कोने कोने से पधारे

राम भक्त कवि, कवयित्रियां साहित्यिकार 

और आभासी रिश्तों में बंधे 

मित्र, बड़े छोटे भाई बहन, 

ताऊ, ताई, ननद, देवर भौजाई।


हाल का उल्लासित माहौल 

उन सबकी ख़ुशी बयां कर रहा था,

सबके चेहरों पर तैरती खुशियों से

सुखद आनंद हिलोरें मार रहा था।


सबके अपने अपने आत्मीय रिश्ते 

आत्मीयता की पराकाष्ठा में प्रगाढ़ हो रहे थे,

जैसे फिर कभी दूर ही नहीं होंगे

और दूर भी भला कहां हुए ?


सब अपनी अपनी सुखद यादें लिए

वापस तो गए अपने अपने घर शहर 

पर मिलन अद्भुत तस्वीरें साथ ले गए,

अपने हिस्से का प्यार दुलार आशीर्वाद

और अपनापन बटोर ले गए 


बड़ों का बड़प्पन भरा अपनत्व दुलार और छोटो की 

निश्छल आधिकारिक शिकायतें

बड़े प्यार से समेट समेटकर 

सब भारी मन से पुर्नमिलन के अटल विश्वास के साथ

सब भारी मन से विदा जरुर हुए

अंजाने चेहरे अंजाने लोग संग

रिश्तों की नई तस्वीर ले गए 

मिलन की नई मिसाल पेश कर गए।


सब आज भी अपने अपने स्थान पर मुस्करा रहे हैं,

"मतंग के राम" का आभार धन्यवाद कर रहे हैं

जय श्री राम का जयघोष कर रहे हैं। 


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