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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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अमानवीय संवेदनाएं

अमानवीय संवेदनाएं

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एक मनहूस खबर ने 

समूचे राष्ट्र को स्तब्ध कर दिया,

तीन ट्रेनों के टक्कर में सबकुछ लहूलुहान हो गया।

मंजिल पर सकुशल पहुंचने की उम्मीद

अचानक धूलधूसरित हो गई,

दो हो अट्ठासी लोगों की जीवन यात्रा थम गई।

चीख पुकार, दिल दहलाने वाले दृश्य से

कलेजा मुंह को आ रहा था,

परिजनों को खबर मिली

तो वह बदहवास हो गया।

अपनों की खोज में दर दर भटक रहा था

समय जैसे थम सा गया था,

राहत , बचाव, चिकित्सा सब जारी था,

परिजनों को खोने वालों का हाल बुरा था

जो बच गए थे 

वो ईश्वर का धन्यवाद कर रहे थे

जिनका सब कुछ लुटपिट गया

वो नसीब को कोस रहे थे।

आसपास के लोग भी ईश्वर का दूत बन

मानवीय संवेदना की मिसाल पेश कर रहे थे

तो कुछ ऐसे भी थे जो

इस मौके को अपने लिए अवसर मान

लूट पाट भी बड़ी निश्चिंतता से कर रहे थे।

बालासोर में तरह तरह की कहानियां 

हवा में तैर रहे थे।

आरोप प्रत्यारोप के तीर चल रहे थे

सब अपने अपने ढंग से व्याख्यान दे रहे थे

दोषों का ठीकरा इनके उनके सिर पर फोड़ रहे थे।

सरकार अपनी जिम्मेदारी निभा रही थी,

राहत, बचाव, घायलों की चिकित्सा

और रेल संचालन को 

प्राथमिकता देकर धैर्य से आगे बढ़ रही थी।

पर हमारे देश की विडंबना देखिए

विपक्षी नेताओं को जैसे मौका मिल गया,

सरकार को घेरने का होड़ मच गया

राहत, बचाव में तो कोई दल आगे नहीं आया

आरोपों का सिलसिला खूब चलाया

सरकार के हर प्राथमिक कदम को नहीं

जांच के आदेश पर भी अविश्वास जताया

मानवीय संवेदना का भाव तक नहीं आया

पहले सहयोग करने 

फिर दो चार दिन बाद ठहर कर

आरोप लगाने का ख्वाब तक नहीं आया

समय, परिस्थिति और दर्द चीख पुकार

उनके पत्थर दिल को नहीं हिला पाया

लाशों पर राजनीति करने वालों से

राष्ट्र, समाज और पीड़ा में तड़पता इंसान

आंसुओं को पीकर जीने की कोशिश करने वाला

भला कब कौन कहां बच पाया?


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