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Anil Sharma

Tragedy

4  

Anil Sharma

Tragedy

चुप हो कई दिनों से,

चुप हो कई दिनों से,

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दरवाज़ों ने भी अब, घूरना छोड़ दिया,

शांत, गुमसुम पड़ा सोफा मेरा,

दीवारों ने सुनना, समझना छोड़ दिया,

उड़ते काग़ज़, खामोश कलम पूछे, क्यों डांवाडोल हो,

चुप हो कई दिनों से, अब तो कुछ बोल दो।

चुप हो कई दिनों से, अब तो कुछ बोल दो।


पिछले महीने ही तो मुलाक़ात की थी,

माना जिम्मेदारी थी बाज़ार, बच्चे के स्कूल की,

जल्दी उठी सुबह, लंबी शाम के बाद, छोटी पर मुनासिब रात तो थी,

जंग लग, बंद से पड़ चुके दिल के किवाड़,

अब तो खोल दो, चुप हो कई दिनों से,

अब तो कुछ बोल दो चुप हो कई दिनों से,

अब तो कुछ बोल दो शिक़वा नही वक़्त की रफ़्तार से, पर ये ज़ाया जाता है,

जैसे मुट्ठी में बंद रेत भी, बिख़र हाथ खाली कर जाता है,

मैं हूं चुप, पर तुम्हारे चाय का खाली कप, सौ सवाल कर जाता है,

इन्तेहा कर, कैलेंडर भी पूछ बैठा, मेरा तो कुछ मोल लो,

चुप हो कई दिनों से, अब तो कुछ बोल दो।

चुप हो कई दिनों से, अब तो कुछ बोल दो।


धैर्य बांध अब टूटा ऐसा की, काश अभी आ जाता,

बंधंन छोड़ - एक सांस दौड़ - दु तोड़,

ये एकांकी व्यथा, पर अदृश्य सांकलों ने जकड़ा,

जो न टूट पाता, शहर बंद, हर इंसा कैद,

बस मेरे मन को तो खोल दो,

चुप हो कई दिनों से, अब तो कुछ बोल दो।

चुप हो कई दिनों से, अब तो कुछ बोल दो।


वक़्त की दी टीस, अब शायद वक़्त की भर पायेगा,

दुआ करता, जैसा सांस थामे पड़ा वक़्त अभी,

कल तेरे पास आकर भी, युही रुक जाएगा,

इसी उम्मीद से मैं तेरा इतंज़ार कर रहा हु,

की सारांश जीवन का तुम्हीं, तुम्हीं धुरी तुम्हीं खगोल हो,

चुप हो कई दिनों से, अब तो कुछ बोल दो

चुप हो कई दिनों से, अब तो कुछ बोल दो।


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