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Vikas Sharma Daksh

Romance

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Vikas Sharma Daksh

Romance

खत का तलबगार

खत का तलबगार

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बेसबब ही मुहब्बत का क्या हिसाब देते,

कोई सवाल आता तो वाज़िब जवाब देते,


अरसे से बंद दराज़ में खत मेरे नाम के,

नाराज़गी के खार में रख इक गुलाब देते,


खतूत क़ासिद के हाथ ना देने थे ना सही,

भेज मेरे नाम के कुछ अपने ख़्वाब देते,


गर बेबस हुए ज़ज़्बात इज़हार हुए होते,

दिल के हर बयान को कर कामयाब देते,


वाज़िब है नकेल डालना ज़हनी घोड़ों पे,

तमन्नाओं की कसक से हैं कर बेताब देते,


वो जो बेपनाह इश्क़ के अलफ़ाज़ खत में,

इक दीवाने की रूह को कर शादाब देते,


'दक्ष' आज भी तलबगार हूँ उन खतूत का,

मिल जाएं गर तो शायद छपवा किताब देते।


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