याद – गाँव की
याद – गाँव की
सर्दियों में याद आता है मुझे अपना गाँव,
दुपहरी की नर्म धूप और बुजुर्गों की छाँव,
वो पीली सरसों के खेतो से होकर गुज़रना,
नहर के पुल पर जाकर बैठना लटकाए पाँव,
वो भरी जेब में मुठ्ठियाँ मूंगफली की,
ताज़ी ताज़ी भेली वो गरम गरम गुड की,
शाम पड़े वो जलाना अलाव आंगन में,
और वो सोंधी महक भुनी शकरकंद की,
वो मक्की की रोटी वो सरसों का साग,
वो बाजरे की खिचड़ी का गज़ब स्वाद,
दादी की बनाई पिन्नियां बड़ी बड़ी,
और माँ के हाथ का गर्म गाजरपाक,
मानो पुकारती मुझे है गाँव की चौपाल,
गाँव गए हुए जाने बीते कितने ही साल,
शहर की भाग-दौड़ में शोर ही शोर है,
याद आती है गाँव की अलसाई सी सुरताल...