तुम कौन हो
तुम कौन हो
तुम चुपचाप आती हो
बिना रुके चली जाती हो
झटके देने में माहिर हो
तुम्हारा 'लक' लकाता है
हमारा 'लक' बेईमान है
तुम जरूर ये कहती हो
कभी ऐसा भी कहती हो
तुम बनो गगन के चंद्रमा
मैं धरा की धूल बनती हूं
फिर मिलने कहती हो
सुगंध और सुमन की तरह
बाद में खूब नखरे दिखाती हो
चांद बनकर आती जाती हो
फिर चांद में चढ़ जाती हो
कभी प्रेम के बीज लाती हो
कभी झाड़ पेड़ उगाती हो
जब दिल की बात करो तो
बेवजह देह तुम दिखाती हो।

