STORYMIRROR

Jai Prakash Pandey

Others

3  

Jai Prakash Pandey

Others

बसंती बयार

बसंती बयार

1 min
176

झीलें चुप थीं और

पगडंडियाँ खामोश, 

गुनगुनी धूप भी 

चैन से पसरी थी, 


अचानक धूप को

धक्का मार कर

घुस आयी थी, 

अल्हड़ बसंती बयार

मौन शयनकक्ष में, 


अलसाई सी रजाई

बेमन सी सिमटकर

दुबक गई थी मन में,


अधखुले किवाड़ की

लटकी निष्पक्ष सांकल

उछलकर गिर गई

थी उदास देहरी पर,

 

हालांकि मौसम

डाकिया बनकर

खत दे गया था बसंत का, 



Rate this content
Log in