पाती प्रीति की
पाती प्रीति की
प्रीति की लिखी पाती
भेज ही नहीं पायी।
श्याम तेरी उल्फ़त को
प्यार को मुहब्बत को
दिल की अंगनाई में
प्रीति की लुनाई में
धन सा कंजूस के
सहेज ही नहीं पायी।
प्रीति की लिखी पाती
भेज ही नहीं पायी।
ऐसे मत रूठ पिया
कुछ मेरी भी तो सुन
मन के यमुना तीरे
तेरी मुरली की धुन
प्रीति की प्रतीति लिये
गूँज ही नहीं पायी ।
प्रीति की लिखी पाती
भेज ही नहीं पायी ।।
रोज़ रोज़ है बहती
यादों की पुरवाई
मन आँगन में तेरी
प्रीति लता हहराई
अर्द्ध खिली कलियों में
मथुरा की गलियों में
बहती वह प्रणय धार
तेज ही नहीं पायी।
प्रीति की लिखी पाती
भेज ही नहीं पायी।

