अंदाज़
अंदाज़
शाम ढलते ही लबों पर ग़ज़लों का राज़ है,
दूर से आ रही हमारे दिल की आवाज़ है,
लग रहा है मौसम सुहाना आज की शाम,
लगता है छेड़ा किसी ने इश्क का साज है।
मस्ती है छाई हम पर, दिल डूबा है यादों में,
कितने ही रंग बिखरे हैं महबूब के वादों में,
जो बात छिपी थी, उसे सामने तो लाए,
कि जुबां हमारी ही हमसे नाराज़ है।
आसमां में उड़ते बादल आवारों की तरह,
हम भी खुश हो लिए बहारों की तरह,
ये और बात है कि हम कुछ कह ना सके,
कि चुप रहना ही सब कुछ कहने का अंदाज़ है।