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dheeraj kumar agrawal

Tragedy

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dheeraj kumar agrawal

Tragedy

ज़िंदगी की बाज़ी

ज़िंदगी की बाज़ी

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ज़िंदगी की बाज़ी में पिटते गए मोहरे हमारे, 

बदकिस्मती थी हमारी कि जीती बाज़ी हम हारे, 


समझ ना पाए असलियत को हम अब तक, 

मतलबी दुनिया ने छीन लिए ख्वाब हमारे। 


भुला दी थीं हमने हिदायतें सबकी, 

सुनते थे तजुर्बे मगर करते थे मन की।


पथरीली राहों पर हमें लगी ऐसी ठोकर, 

कि आंखों से ओझल हो गए सारे नजारे। 


जो चालें चली थीं हमने सोच-समझकर, 

ज़िंदगी ने दिया जवाब बिसात उलटकर, 


हकीकत से मुकाबला करने की हिम्मत ना बची, 

हमें कमजोर कर चुके थे तसव्वुर हमारे। 



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