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dheeraj kumar agrawal

Abstract

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dheeraj kumar agrawal

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अंधेरा दूर भगाना है

अंधेरा दूर भगाना है

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उम्मीद के चिरागों को जलने दो, अंधेरे को दूर भगाना है, 

ज़िंदगी की दास्तां लिखनी है और खुद को भूल जाना है. 

चिरागों की रोशनी में ज़िंदगी का सफर कट जाएगा, 

छाया है दीवानापन जो हम पर, वो दूर हट जाएगा, 


गर बुझ गए ये चिराग तो यादें मर जाएंगी, 

इन यादों को ही हमें अपने साथ लेकर जाना है. 

ख्वाबों की उमर हम कभी जान नहीं पाए, 

उनकी जुबानी सुनीं दास्तां को पहचान नहीं पाए, 


हम खुद को भूल गए जब ख्वाब बन गए हक़ीकत, 

हमें तो उस हक़ीकत को बस यादों में बसाना है. 

ज़ुबां से गिरते लफ़्ज संभल नहीं पाते, 

कोशिशें कर भी वक्त के फंदे से निकल नहीं पाते, 


हमें नहीं मालूम हमारा दिल क्या कह रहा है, 

हमें तो बस अपनी आवाज़ को ज़माने को सुनाना है।


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