इंसानियत के हमदर्द
इंसानियत के हमदर्द
दर्द छिपा होता है चमकती मुस्कान के पीछे,
दर्प छिपा होता है झूठी शान के पीछे,
आज तक दुनिया है अमन की तलाश में,
कि जानवर छिपा बैठा है इंसान के पीछे
चेहरे पे नक़ाब रखने वालों की कमी नहीं,
रोते हैं सबके सामने पर आँखों में नमी नहीं,
आँसू ना निकल पाते हैं जिनकी आँखों से,
बदनीयती भरी होती है मुस्कान के पीछे
दौलत के नशे में चूर होते हैं बेदर्द,
बनते हैं मगर वो इंसानियत के हमदर्द,
छीन लेते हैं जो भूखों के मुंह से निवाला,
शैतान छिपा होता है उनके भगवान के पीछे...
