दुनिया की किताब
दुनिया की किताब
ढूंढ़ते रहे हम बहारों को ख्वाब में,
मिलीं सिर्फ ख़िजाएं उनके जवाब में,
हम तो कैद थे उनकी मुहब्बत में,
पर वो मशरूफ़ थे अपने रूआब में।
अपने महबूब से हम जानना चाहते थे,
कैसा है नशा आंखों की शराब में,
हम क्यों चाहा किए उन्हें बेइंतहा
ऐसी क्या बात थी उनके शबाब में।
मिली न हमें मुसर्रतों की झलक,
ढूंढ़ रहे थे हम गमों के असबाब में,
जाते-जाते हम छोड़ जाते हैं दास्तांं,
साया हो जानी है जो दुनिया की किताब में।
