ख्वाहिश
ख्वाहिश
मेरी ग़ज़लों की ख्वाहिश है कोई इन्हें गुनगुनाए,
कोई आंखों से चूमे तो कोई होंठों पर सजाए,
मान लिया मैंने कि ये उतनी हसीं नहीं,
मगर कोई तो होगा जो इनकी शोखियों पर इतराए.
इन ग़ज़लों की तमन्ना है कोई मेहरबान मिले,
अपने लबों को जुंबिश दे, ऐसा कद्रदान मिले,
इनके लफ़्जों में घोल दे अपनी सांसों की गरमी,
अपने आगोश में ले ले, अपने दिल में बसाए.
ख्वाब है इनका कि ज़माने में ये मशहूर हों,
ना बहुत पास हों और ना ही बहुत दूर हों,
लम्हों को कैद कर सकें, सदियों में कूबत नहीं,
बड़ा असर करती हैं इन कमज़ोर लम्हों की सदाएं।