पति\पत्नी पीड़ित एक पत्नी\पति
पति\पत्नी पीड़ित एक पत्नी\पति
सुनो साथियों एक कहानी दिल की तुम्हें सुनाता हूँ।
पत्नी पीड़ित एक पति की राज़ की बात बताता हूँ।
सुबह सवेरे पहले उठ कर चाय बनानी पड़ती है।
फिर पत्नी को सुबह उठाकर उसे पिलानी पड़ती है।
मीठा कम हो गया या ज़्यादा सोच_सोच घबराता हूँ,
आँख ज़रा सी दिखलाती है ,देख उसे डर जाता हूं ।
पत्नी पीड़ित एक पति की राज़ की बात बताता हूँ।
पानी गर्म करो तुम, बोली पत्नी हमें नहाना है।
घर की कर के साफ सफाई झाड़ू तुम्हें लगाना है।
नज़रों से कहीं गिर न जाऊँ यह मन को समझाता हूं,
झाड़ू पहले करता हूँ फिर पोचा रोज़ लगाता हूँ।
पत्नी पीड़ित एक पति की.................................
ब्रेक फास्ट भी मेडम जी का मुझे बनाना पड़ता है।
इतना ही नहीं टेबल पर भी मुझे सजाना पड़ता है।
बड़े सलीके से मैं उस की टेबल यार सजाता हूं,
अगर हुई थोड़ी भी देरी डरता हूँ थर्राता हूं ।
पत्नी पीड़ितएक पति की........................................
तब तक बच्चे उठ जाते हैं उनको भी तैयार करुँ।
नहलाऊँ ,पहनाऊँ कपड़े दूध पिलाऊँ प्यार करुँ।
बसता टिफन लिये कन्धे पे बस में उन्हें चड़ाता हूँ,
पहले यह सब कुछ करता हूँ बाद में मैं कुछ खता हूं।
पत्नी पीड़ित एक पति की...........................
कपड़े धोना बर्तन करना और नहाना बाकी है।
पूरे करने काम सभी हैं,टिफिन बनाना बाकी है।
मेडम तो जाती है ऑफिस खाना मुझे बनाना है,
करना पड़ता है सब मुझको चलता नहिं बहाना है।
मन में कुड़ता रहता हूं पर चेहरा सरल बनाता हूं,
पत्नी पीड़ित एक पति की .........................
ऑफिस से थक करके पत्नि शामको जब घर आती है।
बनी नहीं गर चाय शाम की जान हमारी खाती है।
उस के आनें से पहले ही उसकी चाय बनाता हूं,
इतना ही नहीं सुबह की तरह टेबल देख सजाता हूं।
पत्नी पीड़ित एक पति की..........................
रात को ऐसा थक कर सोया सुबह हुई कब पता नहिं।
रोज़ यही होता है यारो मेरी कोई खता नहिं।
पति बना हूँ पीड़ित होना ही था मेरी किस्मत में,
पत्नी काश बना होता यह रहा हमारी हसरत में।
ईश्वर के आगे नतमस्तक होकर शीश नवाता हूँ
पत्नी पीड़ित एक पति की.........................
फिर वह खाना फिर वह वर्तन फिर चौका चूला यारो।
कुवाँरे ही रह जाना लेकिन मत बनना दुल्हा यारो ।
क्यों कर की है शादी मैंने सोच सोच पछ्ताता हूं,
खुद तो समझ नहीं पाया पर तुझ को मैं समझाता हूं,
पत्नी पीड़ित एक पति की............................
एक घड़ी यह हँसने की जो सब के बीच बिताई है।
हम नें तुम नें सब नें मिलकर दिल में प्रीत जगाई है।
यह गाथा तो है पत्नी की नाम पति का लाता हूं,
पति नहिं,है पत्नी पीड़ित पर्दा अभी उठाता हूँ।
पति पीड़ित, इक पत्नी की गाथा तुम्हें सुनाता हूं।
गुणगान गा रहा हूं पत्नी का नाम पति का लाता हूँ।
भले पति हूं पत्नी को मैं झुक कर शीश नवाता हूँ।
ऐसा मिला मुझे हमसफ़र सोच सोच इतराता हूँ।
बिना शर्म के खुलम खुला सब को राज़ बताता हूँ।
सुनो साथियो एक कहानी दिल की तुम्हें सुनाता हूँ।