भूल हमसे क्या ज़माने हो गयी।
भूल हमसे क्या ज़माने हो गयी।
भूल हमसे क्या ज़माने हो गई।
ज़िन्दगानी ही मुसीबत हो गई।
मत करो शादी कहा था यार ने,
अक्ल थी तब घास चरने को गई।
सात फेरे ले फंसे जंजाल में,
चंचला मस्ती हमारी धो गई।
जी रहे हैं ज़ुल्म के साये तले,
देख दुख अपना धरा भी रो गई।
यूँ फँसा पंछी शिकारी जाल में,
हाय किस्मत भी हमारी सो गई।
चाँद सी बीबी हमारी खो गई।
चाँद बीबी से मुहब्बत हो गई।
खून पीती थी हमारा रात-दिन,
चैन पाया हाँ मुसीबत हो गई।
यूँ बहारें आ गई उजड़े चमन,
बीज खुशियों के सदा को बो गई।
फिर कभी हमने उसे ढूंढा नहीं,
खुश हुए हम छोड़ जब से वो गई।
नींद में से उठ गए झटका लगा,
पास में थी ख्वाब में थी वो गई।