एक शाम शराब के साथ
एक शाम शराब के साथ
ज़िन्दगी की उलझन सुलझाते थक सा गया था
चारों और तन्हाई थी ,
उस भीड़ की गुंजाइश में अकेला बेबस था,
उस शाम मैं घर लौट रहा था,
सुनसान सड़क थी, उसपे अँधेरा घना था
पता नहीं उस समय मैं होश में था कि नहीं
पर बहुत सोच समझ कर खामोश था ।।
मेरे अतरंगी चाल से, मेरे मुरझाई चेहरे पे
मेरी उलझन झलक रही थी
इसी बीच कोई मुझे पीछे से पुकारते हुए
भाग रहा था !!
एक पल के लिए में थम सा गया
मैं गौर फरमाते हुए पीछे घूमा
देखा!! एक कांच की बोतल भागते हुए मेरे करीब आके रुकी,
दिखने में एक कांच की बोतल थी ,
कुछ हो न हो पर शरीर से एक दर्दनाक बदबू उमड़ आ रही थी ।।
मैंने पूछा कौन हो भाई,
बुरा मत मानना पर सच है आपके बदबू सह पाऊँ
इतनी मेरे पास ताक़त नहीं है
हँसते हुए उसने कहा
बेशक मुझमें बदबू है, पर जो भी अपनाया उसे ये जिस्म भाया है
अगर वक़्त है तो कुछ बात करें
मैंने सोचा चलो कोई तो है जो रिश्तेदारी निभाने आ गया
सड़क के किनारे एक बेंच था
एक किनारे पे वो बैठा दूसरे पे मैं था।।
उसने कहा, "मेरा नाम शराब है
मुझ पे शबाब का रंग गहरा है
भले ही मेरे अस्तित्व पे कीचड़ क्यूं न उठे
पर ज़माने में मेरे चाहने वाले बहुत हैं
इंसान की हर गम का मर्ज हूँ मैं
हर ख़ुशी का हिस्सेदार हूँ मैं
जिसको में भाऊँ उसके लिए मैं मजा
बाकी सबके लिए ज़िन्दगी उजाड़ने की वजह
भले ही सब दिल खोल के अपनी भड़ास मुझ पे क्यूं न निकाले
पर ज़िन्दगी की शुरुआत हो न हो अंत मुझ पे आ रुकती है।।
देखा जाये तो सबकी ज़िन्दगी में
मेरी हिस्सेदारी बराबरी की है
पर कोई मुझे दिल खोल के अपनाये
तो कोई लात मार के ठुकराता है ।।
हम तो आपकी ज़िंदगी में भी आये थे
और आपने बड़ी शराफत से मना कर दिया
वहीं आपके दोस्त के पास गए
तो बिना शरमाये हमें अपना लिया ।।
फर्क तो बस सोच की है
जिसे मैं अच्छा लगा मैं उसके लिए महान
जिसे बुरा लगा उसके लिए शैतान
मुझे कोई गम नहीं की मेरे लिए कितनों के घर उजड़ गए
पर ख़ुशी है कोई एक तो खुश है।।
मैंने कहा
ठुकराने की बात है
तो बेशक तुम्हें ठुकराता हूँ मैं
पर सच तो है मेरे गम में मर्ज बनो
ऐसे दोस्त तुम्ही हो।।