!! मैं कर्ण हुँ !!
!! मैं कर्ण हुँ !!


मैं क्रोध की अग्नि सा,
जल रही ज्वाला हूँ,
इंद्र के वज्र समीप,
सूर्य का प्रताप हूँ,
मैं कर्ण हूँ !!
मैं कर्ण हूँ !!
जन्म मेरा द्वंद सा,
मैं तो नन्ही सी जान हूँ,
कृष्ण लीला आधार सा,
दो माताओं का एक संतान हूँ,
कौन्तेय हो कर कभी न कहलाया,
मैं राधेय हूँ !!
मैं राधेय हूँ !!
कुरु वंश का था मैं दीपक,
फिर भी सुद पुत्र है कहलाया हूँ,
शिक्षा तो एक व्यापार ही था,
उस अधिकार से बंचित हूँ,
अहंकार नही विश्वास है,
परशुराम का
शिष्य हूँ,
सामर्थ्य को मेरे बिन परखे,
यूँही जग मैं बदनाम हुआ हूँ,
मैं कर्ण हूँ !!
मैं कर्ण हूँ !!
अधर्म के साथ हूँ खड़ा,
पर मित्रता का प्रतीक हूँ,
जीबन तो एक संघर्ष था,
मैं प्रतिशोध का चिंगार हूँ,
महानायक के समीप मैं,
खलनायकों का नायक हूँ,
धर्म का प्रतीक था,
अब अधर्मियों के साथ हूँ,
पग पग मैं अड़चने आये,
लाख लांछनों से घिरा हूँ,
जिस युग ने है नकारा मुझे,
आज वंही श्रेष्ठता का मिसाल हूँ,
मैं कर्ण हूँ !!
मैं कर्ण हूँ !!