!! में पितामह भीष्म हूँ !!
!! में पितामह भीष्म हूँ !!
जीवन के प्रथम चरण में पिता से दूर रहकर
बाल्यकाल है खोये,
परिवार की महत्वाकांक्षा को ना जाना,
बस माता से ही समग्र ब्रह्मांड को है जाने,
मैं देवव्रत हूँ,
जो धर्म संस्थापक कहलाये !!
पिता के सुख के हेतु,
ब्रह्मचर्य का व्रत लिए,
राष्ट्र को सर्वप्रथम है मान कर,
सामर्थ्य हो कर भी सिंहासन का दास बनकर है जिये,
मैं भीष्म हूँ,
जिसका महत्व अखंड कहलाये !!
पक्षपात का भेद न जाना,
सर्वदा श्रेष्ठता को साथ है लिए,
एक परिवार के दो टुकड़े,
न चाहते हुए भी इन हाथों से किये,
मैं पितामह हूँ,
जिसके बातों का किसी ने पालन
और कइयों ने अवज्ञा है किया !!
मैं ही दुशासन का हाथ बन,
द्रौपदी के वस्त्र हरे,
कुरु राजसभा में आंख मेरे,
धर्म को अधर्म से हारता देखे,
मैं महामहिम हूँ,
जो कुरुवंश में पापी कहलाये !!
मैं नव पुष्प हूँ, मैं ही सुखा पत्ता,
में ही कुल का गौरव हूँ, मैंने ही वंश का नाश किया,
अपने अखंड प्रतिज्ञा से अमर हूँ,
उसी से धर्म को हारने दिया,
मैं ही युधिष्ठिर भाती चक्रवर्ती हूँ,
मैंने दुर्योधन सा विध्वंस रचाया,
मैं पितामह भीष्म हूँ!!
समय के अंत तक अधर्मियों का शिरोमणि रहा,
और इतिहास की पन्नों ने सर्वश्रेष्ठ वीर कहलाया !!