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P Anurag Puri

Others

3.9  

P Anurag Puri

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अपने परिवार से विदा हो गये

अपने परिवार से विदा हो गये

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वक़्त की धूपं या तेज़ हो आँधियाँ,

कुछ कदम के निशा कभी नहीं खोते, 

जिन्हें याद करके मुस्कुरा दे ये आँखें,

वो लोग दूर हो कर भी... कभी दूर नहीं होते ॥

रहे दूरियाँ तो क्या हुआ...

याद नज़रों से नहीं, दिल से किया जाता है,

मेरी यादोँ की कस्ती अखिर उस समंदर में तैरती है,

जंहा पानी सिर्फ और सिर्फ मेरे पलकों के होते हैं !!

 

वो बिन बात का रात रात भर जगना...

फिर मजबूरी से सुबह का नास्ता करना...

भले फर्स गंदा क्यों ना हो...

पर रोज़ पानी से होली खेलना...

मेस का खाना जैसा भी कयू ना हो...

यारोँ की महफिल में उसीसे मजे लूटना...

थोड़ी चाहतें, कुछ उम्मीदें जो थे संजोते,

न चाहते हुए भी अपनी बदकिस्मती उन्हें ही कुचले,

ये आखरी साल भी आखिर कुछ यूँ गुजरे...

की ख़ुशियों की कश्ती को दर्द-ऐ-समंदर में ले डूबे !!

 

वो मास बंक जो पहले से तय थे,

या क्लास रूम में बैठ के एग्जाम जो देने थे,

उन्हें भी कुछ ऑनलाइन क्लास ने,

और बाकी को सिलेबस ने हमसे छीन लिए,

पता ही नहीं चला कब घर बैठे,

पुरी ग्रेजुएशन खतम कर लिये,

थोड़ी नादानी थोड़ी शरारतें जो बचाके रखे थे,

<

em>उन्हें भी यादोँ के सहारे बस जिंदा ही रखे हैं,

आखिर ये आखरी साल भी कुछ यूँ गुजरे...

की ग़मों को हसी पे और खुशियों को अश्कों में संभाले हुए हैं !!

 

वो दोस्तों में घुल जाना,

वो यूँ क्रश का इतराना,

प्रोफेसर की डाटें कहो या प्यार

ये यादें बाद सताती है,

ऐ दोस्त...

ये लम्हे आज रुला रही है !!

 

होस्टल की वो बातें,

वो अड्डे में मुलाकातें,

जन्मदिन की वो रातें

"सिगरेट" से भाले कतराओं,

हाँ "टापरी" की याद जरूर आती है,

ये समा भी आखिर इतनी ही खास है...

के घर पे रह के होस्टल की याद आती है,

ऐ दोस्त...

ये लम्हे आज रुला रही है !!

 

नजने क्यों अब सब थम सा गया है,

ये लम्हे,

ये मुलाकातें

ये जस्बात,

जैसे मानो कोई साजिस होने को है,

आगाज जीस पैमाने पे हुअा थे..

अंजाम एसा होगा कभी सोचे ना थे...

आखिर वो जातें है घर तक,

उन रास्तों से जुदा हो गये,

सही मायनों में अपने परिवार से,

आज विदा हो गये !!

(TOPIC 2)


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