चुनाव का मौसम।
चुनाव का मौसम।
आज सुबह जैसे ही उठा,
डोर वैल बजा,
निकला बाहर,
गेट तक पहुंचा,
सामने सफ़ेद कुर्ते पजामें में
एक भद्र पुरुष दिखा,
साथ लोगों का हजूम।
मैं हक्का-बक्का,
माथे पे शिकन डाले,
पुंछ बैठा,
क्या बात है भई,
आखिर सुबह-सुबह आने की तकलीफ़ उठाई।
तभी हजुम में से एक श्क्स आगे आए,
बोले ये हैं चौपट लाल,
पार्टी का नाम " खूब खाओ",
बहुत कर्मवीर, गतिशील,
पानी की तरह व्यवहार,
जहां भी डालो,
उसमें समा जाओ,
दिखाई देते तब,
जब चुनाव देते दस्तक,
महाशय, इन्हें कामयाब बनाइए,
खुद भी खाइए और इन्हें भी खिलाइए।
मैंने तुरंत अपना आप संभाला,
चौपट लाल जी के पांव हाथ लगाया,
और कहा मान्यवर,
आप ही तो इस देश के,
असली देश भक्त हैं,
केबल चुनाव के दिन ही करते,
मिलने का प्रयत्न हैं,
मैं भी इसी उम्मीद से बैठा हूं,
अगर आज मैं आपको वोट दूंगा,
तभी तो कानून से बच सकूंगा।
चौपट लाल जी गदगद हो गये,
तुरंत आगे बढ़े,
पार्टी का घोषणापत्र थमाया,
और बोला आप क्यों नहीं हमारे साथ आ जाते,
मिलजुलकर खाते,
वैसे आप काफी होनहार हैं,
जैसे ही पद ग्रहण करूंगा,
आपके लिए कोई विशेष उपहार देखूंगा।
मेरे सड़े हुए चेहरे पे,
मुस्कराहट आ गई,
मैंने तुरंत नेता जी को,
धन्यवाद कहा,
और बोला आप ही प्रभू,
हमारी नैया पार लगाएंगे,
जो भी कमाएंगे,
उसमें से दस प्रतिशत,
आपको दे जाएंगे।
चौपट लाल जी ने,
अपने साथी से कहा,
मालूम होता है,
आदमी है काम का,
केबल अपने वारे में नहीं सोचता,
जो भी खाता,
सबके यहां पहुंचाता।