ना भीगे ना तर बतर हुए
ना भीगे ना तर बतर हुए
यह कैसी बेमौसम की बरसात हो रही है भाई ,
फिर से निकालनी पड़ रही कंबल और रजाई।
मार्च महीने में जब डटकर खोला बक्सा हमने,
हंसने लगी रजाई हमपे कंबल लगा अकड़ने।
अच्छे भले धूप में सिककर आ बैठे थे हम भीतर,
जाने क्या आफत आई कि दिखा हमें ठंड का तीतर।
हम सुधरने वाले ही थे कि तुमने झोल किया है,
ऐसे कैसे आकर कहें तुमने हमको खोल दिया है।
हम अपनी ड्यूटी पूरी कर के अंदर आए थे,
अभी महीने पहले ही हम तो तह कर पाए थे।
ऐसे कैसे तुमने हमको ड्यूटी फिर पकड़ा दी,
जरा सांस लेने भी ना दी फिर गर्दन अकड़ा दी।
अब तो हम पर रहम करो तुम पंखे को चलने दो,
छह माह से बंद पड़ा था अब तो उसे हिलने दो।
ऊपर वाले ने भी हम पर कैसे कर दी है ये गर्दी,
अभी बिताई हमने सर्दी फिर से आई क्यों सर्दी।
जरा प्रकृति ने अब करवट ली है गर्मी में सर्दी आई,
बेमौसम बरसात हुई है देखो ,हम पर भी गर्दी छाई।
अब तो बस है तेरा आसरा आओ लाज बचाओ तुम,
कुछ दिन मेरे दिल में रहना फिर जाकर सो जाओ तुम।
