टूलकिट में नाम
टूलकिट में नाम
एक दिन, एक हवलदार,
मेरे घर पर रौब से आया!
"साहब ने थाने बुलाया है"
आ कर, ये हुक़्म सुनाया!
तय तिथि के अनुसार मैं,
जब थाने में जा के पहुँचा!
"टूलकिट में क्या हाथ है?"
थानेदार ने रौब से ये पूछा!
मैंने थानेदार जी को देखा,
स-विस्मय क्षण-भर देखा!
संशय को लाकर चेहरे पे,
शंकित हो मन-भर देखा!
मैंने बोला,"थानेदार सा'ब,
न कोई दिशा है, न रवि हूँ!
वैसे तो मास्टर जमात से हूँ,
मगर शौक़िया, मैं कवि हूँ!"
थानेदार ने जब सुना जवाब,
वो बोले मेघ सम बरस कर!
"तू मिला, ग्रेटा से नॉएडा में,
अब ये ड्रामा ज़रा बस कर!"
उनकी बात सुन कर मेरा ये,
सिर लगा था, पुनः चकराने!
थोड़ा ज़ेहन पर ज़ोर देने पे,
सब लगा, मुझे समझ आने!
मैंने बोला, "थानेदार साहब,
थोड़े दिन पहले चौक पर!
नशे में धुत्त हवलदार ने तो,
रोका मुझे ताल ठोक कर!"
हवलदार जी ने डंडा दिखा,
इन अकिंचन से पूछा किया!
"कहाँ जा रहा, इत्ती रात में?"
ये कह डंडा फिर उठा दिया!
मैं घबरा उठा और फिर मैं,
संभल कर लगा उन्हें बताने!
"ग्रेटर नॉएडा में घर है मेरा,
गया था मित्र के खाना खाने!"
शायद नशे की पिनक थी ही,
कि ग्रेटर, ग्रेटा सुनाई दे गया!
अमरीका का टूल-किट उन्हें,
नॉएडा में ही दिखाई दे गया!
ठठा-कर हँस दिए, थानेदार,
मेरे काँधे पर हाथ रख दिया!
कहा,"दे दे मुझे तू बीस लाख,
वर्ना तेरा नाम तो लिख दिया!"
थोड़ी देर पहले नाश्ता किया,
अभी लंच में पुनः पिट रहा हूँ!
अभी बंद हूँ जेल में, अमरीका,
के नॉएडा थाने से लिख रहा हूँ!