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डॉ. प्रदीप कुमार

Comedy

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डॉ. प्रदीप कुमार

Comedy

दरबारी कवि

दरबारी कवि

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अपने किसी पसंदीदा शख्स को जेहन में रखकर, 

उस पर लिखी गई कुछ पंक्तियों को 

"कविता" कह देना, 

उसके बदले में चार लोगों से " वाह-वाही" ले लेना, कविता को संकुचित दायरे में रख, 

परिभाषित कर देना।

आधुनिक कवियों ने 

कम समय में बड़ा काम कर लिया है, 

तकनीकी के सहारे सबने 

अपना नाम कर लिया है, 

अब वे चाहते हैं 

पंत, दिनकर आदि की श्रेणी में आना, 

अब वे चाहते हैं 

स्वयं को एक-दूसरे से श्रेष्ठ बताना।

सामाजिक सरोकार से उनका उतना ही नाता है, जितने में उन सबका काम चल जाता है, 

सच लिखने से अब कतराने लगे हैं सब-के-सब, 

दरबार के बाहर नज़र आने लगे हैं सब-के-सब।


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