लिखे जो खत तुझे
लिखे जो खत तुझे
एक रोज़ सोचा यूं
कि हाले बयां कर दूं
जो सोचती रहती हूं
क्यों न प्रियतम को बता दूं?
जब सामने वो पड़े
हालत खराब हो गई।
कहना तो दूर की बात
याददाश्त मानो गुम हो गई।
तब सोचा जाके यूं
क्यों न खत में सब लिखूं?
दिल की हज़ार मस्तियां
लिख कर बयां करूं।
लेकर कलम,कागज़ मैं
फिर बैठ गई,लिखती रही
और फिर पढ़ पढ़ कर
काटती रही।
मेरे दिल का करार लिखूं,
मेरे और सिर्फ मेरे प्यार लिखूं?
तुम्हें देख उड़ जाते हैं होश लिखूं
या तुमसे मिली नज़र,हुई बेहोश लिखूं?
कुछ आया न समझ
हालत हुई खराब,
पन्ने काले होते रहे,फिंकते रहे
दिन हो गया बर्बाद।
सोचा फिर क्यों न एक बस
गुलाब भेज दूं,दिल के आकार
में अपने प्यार का इज़हार भेज दूं।
मन की भाषा लिखा हुआ एक तार भेज दूं।
हद हो गई थी तब, जब
उसका जबाव आया था,
दिल के डॉक्टर के संग
एक माली का उसने पता बताया था।

