एकाग्रता
एकाग्रता
एकाग्र चित्त हो तो असंभव कुछ भी नहीं
समस्या ये है कि चित्त एकाग्र हो कैसे?
मन को बहुत बांधा, रोका, एकाग्र किया,
नन्हे बालक की तरह हाथों से छूटा।
कभी बन तितली, बादलों में जा उड़ा,
तो कभी मक्खी की तरह मिठाई से जा चिपका।
फिर किसी ने बताया और सांसों को गिनना चाहा।
उनके उठते गिरते क्रम को नापना चाहा।
आज कुछ अच्छा सा लगता है,
अब मन इतना नहीं भटकता है!
शायद इसी को एकाग्रता कहते हैं
इससे ही लोग जीवन में सफल होते हैं।
तो देर किस बात की है दोस्तों!
जुट जाएं आप भी इस मन को एकाग्र करें।
बढ़कर उस ऊंची चोटी को, चलो!" चूम लें"
जो न जाने कब से हम सबको पुकार रही,
इस जमीं पर आने का मकसद हमें बता रही।